कोरोना के बाद कौन होगा महाशक्ति अमेरिका या चीन !

Darshan Singh
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अमेरिका और चीन के बीच कोरोना वायरस के मसले पर जो तकरार शुरू हुई, वह अब संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में दोनों एक-दूसरे पर खूब आरोप लगाए।
कोरोना वायरस महामारी इस वक्त दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. इस वायरस की शुरुआत चीन से हुई, जो अब दुनिया में अपने पैर पसार चुका है. अब इसी मसले पर जब संयुक्त राष्ट्र ने बैठक बुलाई तो अमेरिका और चीन यहां पर भी आमने-सामने आ गए. जहां अमेरिका UN-WHO के रोल पर लगातार  सवाल खड़े कर रहा था दूसरी और  चीन ने यहां बैठक में दोनों की जमकर तारीफ की।
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गौरतलब है कि  कोरोना वायरस के मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गुरुवार को एक महाबैठक बुलाई, ये बैठक वर्चुअल थी. चीन ने यहां बैठक में कहा कि कोरोना वायरस एक ग्लोबल चुनौती है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जो अगुवाई की जा रही है चीन उसकी तारीफ करता है.
चीन की ओर से कहा गया कि कोरोना वायरस हर किसी के लिए खतरा है, जिसमें सभी को साथ आकर काम करना होगा चीन संयुक्त राष्ट्र की उस अपील का भी समर्थन करता है, जहां उसने सभी देशों से अपने मतभेद भुलाकर पहले Covid-19 से लड़ने की बात कही. चीन ने यहां कहा कि चीन में जब कोरोना वायरस का संकट था, तब कई देशों ने उनकी मदद की. अब वो 100 से अधिक देशों को मदद पहुंचा रहे हैं. जबकि यह जग जाहिर है कि चीन कैसे दूसरे देशों  को घटिया मास्क तथा वेंटीलेटर की सप्लाई कर रहा है, जहां पाकिस्तान को चीन ने अंडरवियर से बने मास्क भेज दिए वही इटली को वही सामान जो उसको   उसको वापिस सेल्ल  दिया।  चीन इस समय पूरी दुनिया को कोरोना में उलझकर खुद अपनी कम्पनीज में प्रोडक्शन कर रहा है जिससे दुनियाभर की मार्किट पे कब्ज़ा कर सके.

अमेरिका ने कहा की चीन और WHO ने कोरोना पर नहीं रखी पारदिशता।  

अमेरिका की ओर से एक बार फिर यहां बैठक में चीन की नीयत पर सवाल खड़े किए गए. अमेरिका ने कहा कि इस संकट के वक्त में जरूरत है कि पारदर्शिता रखी जाए, ताकि हर कोई सच्चाई जान सके. अमेरिका ने दावा किया कि वह इस वक्त दुनिया के अलग-अलग देशों के साथ मिलकर कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है जैसे  भारत और अन्य उभरती हुई अर्थ्वव्स्थाए।
अमेरिका  की तरफ से पहले भी आरोप लगाया गया था कि चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मिलकर कोरोना वायरस की सच्चाई को छिपाया था, जिसका खामियाजा दुनिया भुगत रही है. इस बैठक में भी अमेरिका ने इस बात को दोहराया और अपील करते हुए कहा कि हर देश को सच के साथ सामने आने की जरूरत है.

संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इस बैठक में ग्लोबल सीज़फायर की अपील की, जिसका अधिकतर देशों ने समर्थन किया. फ्रांस, वियतनाम, अमेरिका, चीन समेत कई देशों ने सीजफायर को सही ठहराया और इस वक्त कोरोना वायरस को सबसे बड़ी चुनौती बताया। कोरोना वायरस को जिस तरह हैंडल किया गया उस से सयुंक्त राष्ट्र तथा WHO दोनो का भविष्य स्पष्ट  रहा क्योंकि अगर अमेरिका  जैसा देश इनके ऊपर ऊँगली उठा रहा है तो फिर कुछ भी हो सकता है क्योंकि भारत शुरू से ही कहता आया है कि सयुंक्त राष्ट्र में वीटो पावर का संतुलन सही नहीं है इस तरह दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आये सयुंक्त राष्ट्र संघ में कुछ बड़े परिवर्तन समय की मांग हैं।
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कोरोना त्राश्दी के बाद जहा चीन अपने आप को नंबर एक शक्ति के रूप में  उभारने की कोशिस करेगा वहीं  अमेरिका अपनी बादशाहत कायम करने की कोशिस करेगा , एक तरफ जहां अमेरिका और चीन के बीच में चल रहे विवादित मुद्दे नए सिरे से उठ सकते हैं जैसे  दक्षिण चीन सागर का मुद्दा हो या ट्रेड वॉर का , इस बार ये मुद्दे नयी ताकत और एक प्रतिशोध की पृष्भूमि के साथ लेकर उठेंगे क्योंकि अमेरिकी सरकार कहीं न कहीं यह मानकर चल रही है कि कोरोना वायरस का षड्यंत्र चीन की एक सोची समझी विदेश कूटनीति का हिस्सा है और कोरोना वायरस के उद्गम के बारे में भी चीन की थ्योरी अमेरिका तथा इंग्लैंड जैसे देशो को डाइजेस्ट नहीं हो रही है।  इसलिए कोरोना  निपटने के बाद  पश्चिम चुप नहीं बैठेगा, शक्ति संतुलन के लिए युद्ध या युद्ध जैसे हालत पैदा होने की पूरी सम्भावना है. 
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वही दुनिया के सभी क्रूड आयल के निर्यातक देश अपनी इकॉनमी को बचाने में सहज नहीं होंगे जिस तरह  दुनिया में कच्चे तेल की कीमते 20 साल के निचले सतर पर पहुँच गयी हैं तो उन देशों को एक बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।  एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में आयल कंसम्पशन दोबारा पिछले स्तर हासिल करने में 1 से 3 साल का वक्त लग सकता है , इतना समय किसी भी देश की इकॉनमी के लिए कोई छोटा समय नहीं होता है. वहीं टूरिज्म आधारित इकॉनमी वाले देश भी गहरे संकट की और बढ़ने  वाले हैं टूरिज्म इंडस्ट्री को   में कई वर्ष लग जायेंगे, इस से यूरोप के बहुत सारे देश प्रभावित जिनमे प्रमुख हैं स्विट्ज़लैंड , हॉलैंड,  इटली,स्पेन तथा अन्य छोटे देश। ये सब लक्षण विश्व में एक अफरा तफरी और युद्ध , गृह युद्ध जैसे हालातो की तरफ इशारा कर रहे हैं.

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